_edited_edited_edited_edited_edited_edited_edited_edited.png)

Founder of Arya Samaj Chhabra

आर्य समाज छबड़ा के संस्थापक स्वर्गीय श्री मदनलाल गुप्ता के विषय में उनके सुपुत्र डॉ रमेश गुप्ता के विचार
पूज्य पिताजी श्री मदनलाल जी का जन्म छबड़ा जिला बारां में 6 मार्च 1922 को हुआ था। ज्येष्ठ पुत्र होने से एवं कुछ और पारिवारिक कारणों से, उन्हें बचपन से ही बहुत आर्थिक संघर्ष करना पड़ा। इसी कारण उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी बहुत कम हुई। जीवन की किसी भी कठिनाई में उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी तीक्ष्ण बुद्धि तथा मेहनत के कारण ही वे सफल हो सके। मैं शायद जब दो या तीन वर्ष का था, तब ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। उसके पश्चात का पिताजी का जीवन अकेले ही निकला। जीविका चलाने के साथ साथ उन्हें संगीत,साहित्य,धर्म एवं कविता लिखने में बहुत रुचि हो गयी। प्रारंभ में वे श्री क्रष्ण एवं श्री राम के पोराणिक पद्दति के भक्त थे। वे जब किशनगंज, ज़िला बारां, राजस्थान में सन 1965 में, TRA के पद पर कार्यरत थे, श्री चन्द्रबिहारी जी आर्य के संपर्क में आये। उनका शास्त्रार्थ 6 महीने चला। अब वे पूर्णतया महर्षि दयानन्द के बताये हुए मार्ग के पथिक बन चुके थे। यही नहीं, उन्होंने, सत्यार्थप्रकाश एवं कई अन्य ऋषि क्रत और दूसरे आर्ष साहित्य का अद्धययन भी किया। आर्थिक क्षमता सीमित होते हुए भी, वे अपने जन्म स्थान छबड़ा, ज़िला बारां में, कुछ और व्यकतियों की सहायता से, आर्यसमाज स्थापित करने, एव उसके लिये भवन निर्माण करने में सफल हुए। उनके छोटे भाई श्री भवानी शंकर जी उनके जीवन के एक अभिन्न अंग रहे। उन दोनों की रची पुस्तक मंगल काव्य संग्रह उनकी भावना एवं काव्य शैली को दर्शाता है। पिताजी ने प्रारंभ में एक छोटी सी पुस्तक लिखी, जिसमें श्री राम एवमं श्री क्रष्ण का चरित्र तथा कुछ वैदिक शिक्षा है। उस पुस्तक का नाम सनातन धर्म ज्ञान संचय रखा गया। मेरे परम मित्र एवं मार्ग दर्शक प्रोफेसर बलवीर आचार्य ने उस पुस्तक को ब्रहत रूप दिया और अब यह वैदिक ज्ञान का एक अनमोल श्रोत है। स्वयं के प्रयास से उन्होंने उर्दू एवं संस्क्रत का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था। पिताजी सरल स्वभाव के थे, पर निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता थे। आजीवन उनका मार्गदर्शन, प्यार एवं आशीर्वाद मुझे मिलता रहा।
यह पिताजी के जीवनपर्यन्त अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि मैं अपने जीवन में शिक्षा के उच्च शिखर पर पहुच सका एवं वैदिक सिद्धान्तों को अपनाकर उस मार्ग में भी मेने पूर्ण सफलता प्राप्त की। ईश्वर की असीम क्रपी रही कि उनके महाप्रयाण के 2 दिन पूर्व ही मैं छबड़ा पहुंचा और जब 29 अप्रैल 2017 अक्षय तीज को 10 बजे प्रातः उनका अन्तिम समय आया, मैं, पुत्री प्रिया एवं श्रद्धेय आचार्य जी भी उनकी शय्या के पास ही खड़े थे। उनका अन्तिम संस्कार पूर्ण वैदि रीति से हुआ। 2 दिन बाद प्रार्थना सभा जिसमें सार्वदेशिक सभा के प्रधान स्वामी आर्यवेश जी, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री श्री विनय आर्य, कोटा ज़िला आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री अर्जुन देव चढ्डा एवं अन्य पदाधिकारी एवं कई और आर्य समाजों के प्रतिनिधि, दूर-दूर से पधारे मित्रगण एवं सगे संबंधी भी थे। जिस स्थान पर पिताजी की अस्थियों को भूमिगत किया गया वहां एक उद्यान का निर्माण कर दिया गया है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि मुझे और समूचे परिवार को उनका आशीर्वाद सदैव मिलता रहै और उनके जीवन से प्रेरणा मिलती रहे।